पहाड़ी इलाकों में
एक जंगली फूल होता है
उसका नाम मुझे पता नहीं
खुशबू याद है..
मन भर देती है !
पहाड़ी इलाकों में
पत्थरों से टकराकर
चोट खाकर ..
नदियां खिलखिलाती हुई
आगे बढ़ जाती हैं !
पहाड़ी इलाकों में
खाई और आसमान के मध्य
पसरी हुई ढलान पर
लकड़ी के तख्तों का संतुलन
घर बन जाता है !
पहाड़ी औरतों के पैर
चट्टान के होते हैं
आंखें सूरज की..
और मन जंगली घास सा!
मैं,
वो पीला जंगली फूल,
वो नदी का पानी,
वो तख्तों का संतुलन,
वो जंगली घास...
हम उतनी ही आसानी से
नहीं भी तो हो सकते थे!
-Ismita