Thursday 27 October 2022

अद्वित और मां

मन शरीर से उचटा जा रहा है

शरीर आगे बढ़ चला है

जरूरत कांधे पर लादे


मन घर के भगवान की बगल

जमीन पर आधा पसरा

सूखी मालाओं की 

काल्पनिक कार चला रहा है


माचिस की तीलियां...

नन्हीं उंगलियां...

बदमाश मुस्कान...

झूठा गुस्सा..

मन के टुकड़े..

अद्वित और मां।


-Ismita


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