मन शरीर से उचटा जा रहा है
शरीर आगे बढ़ चला है
जरूरत कांधे पर लादे
मन घर के भगवान की बगल
जमीन पर आधा पसरा
सूखी मालाओं की
काल्पनिक कार चला रहा है
माचिस की तीलियां...
नन्हीं उंगलियां...
बदमाश मुस्कान...
झूठा गुस्सा..
मन के टुकड़े..
अद्वित और मां।
-Ismita