Saturday 24 September 2022

बातें और चुप

 


जो समझ लिया गया था

कहे बगैर

वो एक रिश्ते को जन्म देकर

बहुत सी बातों के बीच छोड़ गया


बातों से जो बातें पनपी

उनका मतलब अक्सर वो नहीं था

जो कहा गया था


और जो नहीं कहा गया

उस बात की इतनी शाखें उग आईं

कि जो कहना था

वो सूख गया


अब कहने को कुछ भी नहीं

वो जो रिश्ता था

अब वो भी नहीं

मगर बातें अब भी हैं

मेरी बातें

तुम्हारी बातें

उनकी बातें जो मेरे हैं

उनकी बातें जो तुम्हारे हैं

उनकी बातें जो मेरे नहीं

उनकी बातें जो तुम्हारे नहीं

उनकी बातें जो किसी के नहीं


इतनी बातों के बीच

वो जो समझ लिया गया था

कहे बगैर

उसका जिक्र भी कितना बेतुका लगता है।




काग़ज़ से पहले

 हर बार कागज़ पर उतर नहीं पाती

कभी कभी प्याज के छिलकों के साथ 

उड़ जाती है कविता


कभी झटकते हुए निचोड़े गए कपड़े

छिटक जाती है ...

फिर ढूंढने, समेटने को समय नहीं होता


कभी छूट जाती है

धूप में रखी अचार की बरनी की बगल

और जलते पांव झटपट सीढ़ी उतर जाते हैं


कभी पोंछ दी जाती है

थाल पर रह गई पानी की बूंद के साथ

खाना परोसने की हड़बड़ी में


बर्तन धोते हुए कभी

पानी की थाप पर थिरक 

साबुन के साथ फिसल जाती है


दूध पिलाते हुए रात को

बाकी बहुत सी यादों के साथ

उमड़ उमड़ आती तो है

थक कर मोटी हुई पलकों में

मगर लिख दिए जाने से बहुत पहले ही

नींद के साथ ढुलक जाती है कविता



सामंजस्य

 मुझे उतार कर रख दो,

हर वक्त ओढ़े रहना

बेतुकी ज़िद है!


तुम जिन रास्तों से

बिना झिझके निकल जाओगे

मैं वहां उलझ जाऊंगी

कभी तुमसे

कभी खुद से !


आदर्श और अनुभव

एक दूसरे के सापेक्ष होकर भी

दो अलग जिंदगियां जीने को

अभिशप्त हैं...


गलत कोई नहीं

सही कोई नहीं।


__ Ismita




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