जो समझ लिया गया था
कहे बगैर
वो एक रिश्ते को जन्म देकर
बहुत सी बातों के बीच छोड़ गया
बातों से जो बातें पनपी
उनका मतलब अक्सर वो नहीं था
जो कहा गया था
और जो नहीं कहा गया
उस बात की इतनी शाखें उग आईं
कि जो कहना था
वो सूख गया
अब कहने को कुछ भी नहीं
वो जो रिश्ता था
अब वो भी नहीं
मगर बातें अब भी हैं
मेरी बातें
तुम्हारी बातें
उनकी बातें जो मेरे हैं
उनकी बातें जो तुम्हारे हैं
उनकी बातें जो मेरे नहीं
उनकी बातें जो तुम्हारे नहीं
उनकी बातें जो किसी के नहीं
इतनी बातों के बीच
वो जो समझ लिया गया था
कहे बगैर
उसका जिक्र भी कितना बेतुका लगता है।